Kaju Pista Peda: 15 मिनट में बनने वाला स्वादिष्ट जन्माष्टमी भोग – बिना गैस के आसान तरीका

Kaju Pista Peda

काजू पिस्ता पेड़ा (Kaju Pista Peda)

 

त्योहार का मतलब सिर्फ सजावट और पूजा नहीं, बल्कि स्वादिष्ट मिठाइयाँ भी हैं जो घर के हर सदस्य को खुश कर दें। अगर आप सोच रहे हैं कि मार्केट जैसी मिठाई घर पर बनाना मुश्किल है, तो यह काजू पिस्ता पेड़ा (Kaju Pista Peda) आपकी सोच बदल देगा।

इसमें है 3 चीज़ों का परफेक्ट कॉम्बिनेशन – काजू की मलाईदार रिचनेस, पिस्ता की हल्की क्रंचीनेस, इलायची की मीठी खुशबू और सबसे बड़ी बात – यह काजू पिस्ता पेड़ा (Kaju Pista Peda) बिना स्टोव के बन जाता है, यानी न कोई लंबा कुकिंग प्रोसेस और न ही ज्यादा मेहनत। 

इस जन्माष्टमी, क्यों न भगवान कृष्ण को इस घर पर बनी, लाजवाब और देखने में रॉयल लगने वाली मिठाई का भोग चढ़ाया जाए? यह festive recipe न सिर्फ आपके पूजा थाल को चमका देगी बल्कि मेहमानों को भी आपके कुकिंग स्किल का फैन बना देगी।

 

काजू पिस्ता पेड़ा (Kaju Pista Peda) के लिए सामग्री

  • 1 कप काजू
  • ½ कप दूध पाउडर
  • ½ कप पिसी हुई चीनी
  • ½ छोटा चम्मच इलायची पाउडर
  • 2-3 बड़े चम्मच ठंडा दूध (ज़रूरत अनुसार)
  • ¼ कप पिस्ता पाउडर
  • गार्निश के लिए कुछ साबुत पिस्ता (वैकल्पिक)
Ingredients of Kaju Pista Peda

 

काजू पिस्ता पेड़ा (Kaju Pista Peda) बनाने की विधि

सबसे पहले, मिक्सर जार में काजू डालकर बारीक पीस लें। पाउडर को छलनी से छान लें ताकि मिश्रण एकदम स्मूद बने। अब एक बड़े बाउल में काजू पाउडर, दूध पाउडर, पिसी हुई चीनी और इलायची पाउडर डालें। धीरे-धीरे ठंडा दूध मिलाएं और सब कुछ हाथों से मिलाकर एक नरम, स्मूद आटा जैसा मिश्रण तैयार करें।

इस काजू मिश्रण को दो बराबर हिस्सों में बांट लें। दूसरे हिस्से में पिस्ता पाउडर और थोड़ी-सी दूध की छींटें डालकर गूंध लें ताकि हल्का हरा रंग का आटा तैयार हो जाए। हरे पिस्ता आटे से छोटी-छोटी गोलियां बनाएं। फिर सफेद काजू आटे को चपटा करें और उसमें पिस्ता की गोलियां रखकर ढक दें।

पेड़ों को हल्के हाथ से गोल-चपटा आकार दें और चाहें तो किनारों पर चाकू या कुकी कटर से हल्की डिजाइन बना दें। तैयार काजू पिस्ता पेड़ा (Kaju Pista Peda) एक परफेक्ट festive recipe है जिसे तुरंत सर्व कर सकते है।

 

काजू पिस्ता पेड़ा (Kaju Pista Peda) के लिए टिप्स

  1. काजू को पीसने से पहले 2-3 घंटे फ्रीजर में रखें, इससे पाउडर बारीक और ऑयल-फ्री बनेगा।
  2. दूध डालते समय धीरे-धीरे डालें, वरना मिश्रण चिपचिपा हो सकता है।
  3. पिस्ता पाउडर की जगह बादाम पाउडर भी डाल सकते हैं।
  4. ज्यादा मीठा पसंद हो तो चीनी की मात्रा बढ़ा सकते हैं।
  5. पेड़ों पर चांदी का वर्क लगाकर फेस्टिव लुक दें।
  6. अगर पेड़े चिपक रहे हों तो हाथों पर थोड़ा घी लगा लें।
  7. पेड़ों का आकार और रंग बच्चों के लिए और आकर्षक बनाने के लिए मोल्ड का उपयोग करें।

 

निष्कर्ष

त्योहारों पर समय बचाकर स्वाद और खूबसूरती से समझौता करना जरूरी नहीं है। काजू पिस्ता पेड़ा (Kaju Pista Peda) जैसी झटपट बनने वाली festive recipe आपके मेहमानों और भगवान के भोग, दोनों के लिए परफेक्ट है। 15 मिनट में बिना स्टोव बनाई जाने वाली यह मिठाई आपके किचन की शान बढ़ा देगी और त्योहार को और खास बना देगी।

 

FAQ – काजू पिस्ता पेड़ा (Kaju Pista Peda) से जुड़े सवाल

 

Q1. काजू पिस्ता पेड़ा (Kaju Pista Peda) बिना दूध पाउडर के बन सकता है?
हां, आप इसे नारियल पाउडर या क्रीम पाउडर से रिप्लेस कर सकते हैं।

Q2. क्या इसे फ्रिज में रखना जरूरी है?
गर्मियों में हां, लेकिन सर्दियों में कमरे के तापमान पर 3-4 दिन तक ठीक रहता है।

Q4. क्या मैं इसमें गुलाब जल डाल सकता हूं?
हां, 2-3 बूंद गुलाब जल डालने से खुशबू बढ़ जाएगी।

Q5. क्या बच्चों के लिए चीनी कम कर सकते हैं?
बिल्कुल, स्वादानुसार चीनी कम या ज्यादा की जा सकती है।

Q6. पिस्ता पाउडर कहां से मिलेगा?
आप पिस्ता घर पर पीसकर पाउडर बना सकते हैं या मार्केट से रेडीमेड ले सकते हैं।

Q7. काजू पिस्ता पेड़ा (Kaju Pista Peda) बनाते समय मेरा मिश्रण बहुत सॉफ्ट हो गया, अब क्या करें?

थोड़ा सा दूध पाउडर और काजू पाउडर डालकर आटे जैसा टेक्सचर लाएँ, फिर से गूंध लें।

 

Q8. मेरे पेड़े शेप देते समय क्रैक हो रहे हैं, क्या गलती हो रही है?

क्रैक तब आते हैं जब मिश्रण सूखा हो जाता है। थोड़ा सा दूध डालकर फिर से गूंध लें।

 

Q9. क्या इसे शुगर-फ्री बना सकते हैं?
हां, डायबिटिक-फ्रेंडली बनाने के लिए पिसी हुई नारियल शुगर या स्टेविया का इस्तेमाल करें।

 

कृष्ण दास जी की अद्भुत मुक्ति की कथा

 

वृंदावन की पावन भूमि पर एक समय के प्रसिद्ध भक्त थे कृष्ण दास जी। वे श्रीनाथ जी के मंदिर में सेवा का दायित्व निभाते थे। हर दिन वे बड़े प्रेम से ठाकुर जी का भोग लगाते, आरती करते और मंदिर की व्यवस्था संभालते।

एक सुबह का समय था। कृष्ण दास जी अपने रोज़ के कामों में लगे हुए थे। सेवा के लिए उन्हें कुएँ से जल लाना था। वे अपने मन में श्रीनाथ जी का नाम जपते हुए जल लेने पहुँचे। लेकिन उसी समय उनका पैर फिसल गया और वे सीधे कुएँ में जा गिरे। दुर्भाग्यवश, वहीं उनकी देह छोड़ दी।

जब यह समाचार ब्रजमंडल में पहुँचा, तो हर कोई हैरान रह गया — “ऐसे महान कृष्ण भक्त की अकाल मृत्यु कैसे हो सकती है?” भक्तों के हृदय में संशय उत्पन्न हो गया। इसी बीच, एक व्यक्ति ने यह अफवाह फैला दी कि कृष्ण दास जी की आत्मा भटक रही है और वे भूत बन गए हैं।

यह बात फैलते ही कुछ लोगों का भजन और नाम जप में विश्वास डगमगाने लगा। “अगर इतने बड़े भक्त की ऐसी गति हो सकती है, तो हमारे साथ क्या होगा?” — ऐसा सोचकर कई लोग विचलित हो गए। यह समाचार जब स्वामी श्री हरिदास जी तक पहुँचा, तो उन्होंने दृढ़ स्वर में कहा — “ब्रज की भूमि पर जन्म लेने वाला, या यहाँ नाम जप करने वाला कोई भी सच्चा भक्त कभी अधोगति को प्राप्त नहीं होता। यह असंभव है।”

स्वामी जी ने तुरंत निर्णय लिया कि इस भ्रम को समाप्त किया जाए। वे स्वयं, हितवंश महाप्रभु, हरिराम व्यास जी और कई अन्य आचार्य मिलकर वृंदावन से गिरिराज जी की ओर श्रीनाथ जी से मिलने निकल पड़े। 

जब ये सभी गिरिराज जी पहुँचे, तो श्रीनाथ जी को यह समाचार मिला। ठाकुर जी को यह डर सताने लगा कि कहीं उनके प्रिय भक्त उन्हें डांट न दें। इसलिए उन्होंने अपने गोसाई जी, श्री विट्ठल नाथ जी, से कहा — “तुम इन्हें यहीं रोक लो, मैं मिलने के लिए तैयार नहीं हूँ।”

लेकिन आचार्य लोग किसी के रोके कहाँ रुकते! वे सीधा श्रीनाथ जी के दर्शन को पहुँच गए। स्वामी हरिदास जी ने अपनी गहन भाव-समाधि में ठाकुर जी से संवाद किया। तब श्रीनाथ जी ने सच्चाई प्रकट की — “कृष्ण दास जी भूत नहीं बने हैं। वे तो मेरी नित्य गोचर लीला में ग्वाल बन गए हैं। वे अब प्रतिदिन मेरे साथ गाय चराते हैं।”

इसी समय एक ग्वाला वहाँ आया और उसने सबके सामने कहा — “मैंने कृष्ण दास जी को ठाकुर जी के साथ गाय चराते देखा है। उन्होंने मुझसे कहा कि जाकर सबको बताओ — मैं भूत नहीं बना हूँ।” कृष्ण दास जी ने उस ग्वाले को एक प्रमाण भी दिया — “मेरे आसन के नीचे 1000 सोने की मोहरें रखी हैं। जाकर दिखा देना, ताकि सबको विश्वास हो जाए।”

जब गोसाई जी ने उस स्थान पर खुदाई करवाई, तो सचमुच वहाँ 1000 मोहरें मिलीं। यह देख सभी के संशय मिट गए। सबने मान लिया कि कृष्ण दास जी का देहावसान किसी साधारण अंत का परिणाम नहीं था, बल्कि वे ठाकुर जी की शाश्वत सेवा में लीन हो गए हैं।

इस अद्भुत घटना के बाद आचार्यों और भक्तों ने जोरदार जय-जयकार की — “श्रीनाथ जी की जय! स्वामी हरिदास जी की जय!” फिर निर्णय हुआ कि इस पावन अवसर पर 56 भोग का भव्य उत्सव किया जाए। भजन, कीर्तन और प्रसाद के साथ यह कथा ब्रजवासियों के मन में अमिट हो गई — कि सच्चे भक्त की गति केवल प्रभु की चरण-सेवा होती है।

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